mode_edit x

Your Name:
E-mail Address *:
Message *:

Thank You! :)


फिलॉसफर

लहरों का बनना, बिगड़ना, आना, और वापस लौट जाना धीरज को उलझाये हुए था. उसने अपनी नज़र घुमाई तो देखा कि वाणी सामने की ओर देख रही है. मुग्ध, स्थिर.

Saturday, 9 December 2017



देखो ना

1.

मेरे तकिए तले

हौले से उग आया है कुछ

तुम्हारी याद शायद रह गई है

Saturday, 8 July 2017



मन के कोने


मेरे मन में ढेर सारे कोने हैं
मैं कुछ कोनों को जानता हूँ
और कुछ कोने मुझे

Thursday, 4 May 2017



उम्मीद




पार्क की उस बेंच के नीचे एक कोने पर दूब उग आई थी.

Wednesday, 18 January 2017