1.
मेरे तकिए तले
हौले से उग आया है कुछ
तुम्हारी याद शायद रह गई है
2.
मैं रूखा हो गया हूँ
डायरी में रखे
तुम्हारे दिए गुलाब की सूखी पत्तियों सा
आंखों की नमी नहीं गई है
3.
अंधेरे की चादर लिए आई है रात
बुझ गई है सारे शहर की बत्तियां
तुम्हारे पहलू से टूटा तारा
अब भी चमक रहा है
4.
खामोशियाँ चिपक गईं हैं दरवाजों से
ऊँघने लगे हैं सन्नाटे
तुम्हारे खयालों को नींद
कब आएगी
5.
सलवटों में अब भी बाकी है
तुम्हारे स्पर्श का रंग
वे बनती बिगड़ती हैं
यह नहीं मिटता
6.
किसी वीरान जंगल की सूखी टहनियों से होकर
लौट आया है एक झोंका खाली हाथ
क्या हवाएं भूल गई हैं
बादलों के ठिकाने?
7.
भूल गईं हैं पगडंडियां
रास्तों को जोड़ने के गुर
बरसों पुराने किसी पुल की अंतिम रस्सी को
नदी अपने संग बहा ले गई है
8.
आ कर चली गई हैं बारिशें
बूंदों ने धो दिया है सारा आसमान
मैंने भीगने की कोशिश की
तुम्हारी महक धुली नहीं है
9.
देखता हूँ हर बरस
गुज़रते हुए कितने मौसम
तुम्हारे जाने का मौसम
ठहर गया है
मेरे तकिए तले
हौले से उग आया है कुछ
तुम्हारी याद शायद रह गई है
2.
मैं रूखा हो गया हूँ
डायरी में रखे
तुम्हारे दिए गुलाब की सूखी पत्तियों सा
आंखों की नमी नहीं गई है
3.
अंधेरे की चादर लिए आई है रात
बुझ गई है सारे शहर की बत्तियां
तुम्हारे पहलू से टूटा तारा
अब भी चमक रहा है
4.
खामोशियाँ चिपक गईं हैं दरवाजों से
ऊँघने लगे हैं सन्नाटे
तुम्हारे खयालों को नींद
कब आएगी
5.
सलवटों में अब भी बाकी है
तुम्हारे स्पर्श का रंग
वे बनती बिगड़ती हैं
यह नहीं मिटता
6.
किसी वीरान जंगल की सूखी टहनियों से होकर
लौट आया है एक झोंका खाली हाथ
क्या हवाएं भूल गई हैं
बादलों के ठिकाने?
7.
भूल गईं हैं पगडंडियां
रास्तों को जोड़ने के गुर
बरसों पुराने किसी पुल की अंतिम रस्सी को
नदी अपने संग बहा ले गई है
8.
आ कर चली गई हैं बारिशें
बूंदों ने धो दिया है सारा आसमान
मैंने भीगने की कोशिश की
तुम्हारी महक धुली नहीं है
9.
देखता हूँ हर बरस
गुज़रते हुए कितने मौसम
तुम्हारे जाने का मौसम
ठहर गया है
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