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मैडम क्यूरी: इश्क़ और रेडिएशन


“मैडम क्यूरी, मैं अल्बर्ट आइन्स्टीन हूँ”
मेरी क्यूरी ने चौंककर पीछे देखा. मौका था ब्रुसेल्स में दुनियाभर के फिजिक्स और केमिस्ट्री के वैज्ञानिकों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन सोल्वे कांफ्रेंस का. साल था 1911. एक नोबेल जीतने के बाद भी यहाँ क्यूरी का तिरस्कार किया जा रहा था. कोई उनसे बात करने तक उनके पास नहीं आ रहा था. वजह थी कि उनके पति पियर की मौत के बाद उन्हें एक शादीशुदा पुरुष से प्रेम हो गया था. उन्होंने किसी को कुछ देर पहले दबी जबान में यह कहते सुना था कि उन्हें कांफ्रेंस से चले जाने को कह देना चाहिए.
उनकी तरफ आया यह नौजवान मुस्कुरा रहा था. इसने फिजिक्स की दुनिया के बड़े बड़े वैज्ञानिकों को उलझन में डाल दिया था.

क्यूरी यहाँ से बाहर जाने की सोच ही रही थीं कि आइन्स्टीन ने कहा,
“मैंने आपके बारे में कुछ अफवाहें सुनी हैं. मैंने सुना है कि आप दूसरा नोबेल भी जीतने वाली हैं.”

क्यूरी मुस्कुराईं. उन्होंने अपने चारों ओर लोगों को उन्हें घूरते देखा.
आइंस्टीन ने कहा, “आप उनके बारे में मत सोचिए. उनके मजाक उनके शिष्टाचार से भी बदतर हैं.”

“फिर तो आप उनके लिए एकदम फिट बैठते हैं.” क्यूरी ने यह कहा और दोनों महान वैज्ञानिक मुस्कुरा दिए.

यह जानकर आश्चर्य होगा कि फिजिक्स के रिसर्च में मील का पत्थर साबित हुई इस कांफ्रेंस का विषय था – ‘रेडिएशन और क्वांटा' और ये दोनो विषय इस कांफ्रेंस हॉल में मजाक का पात्र बने इन दो जीनियस वैज्ञानिकों की रिसर्च के थे.


सोल्वे कांफ्रेंस की तस्वीर                                : साभार – Huffington Post

आइंस्टीन की मजाक मजाक में कही बात सच साबित हुई और उसी साल दिसम्बर में मैडम क्यूरी को रेडियम और पोलोनियम की खोज के लिए केमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार मिला. इसी के साथ वह इतिहास में एक से ज्यादा विषयों में नोबेल जीतने वाले एकमात्र व्यक्ति के रूप में अमर हो गईं. 
मैडम क्यूरी विज्ञान की दुनिया में उस समय वह स्थान हासिल करने वाली पहली महिला थीं और अपने वैज्ञानिक साथियों के बीच अकेली.


  पोलैंड के वर्साव में पैदा हुईं मैरी क्यूरी का मूल नाम का मारिया स्क्लोदोव्सका था. अपनी असाधारण जिज्ञासा से टीचर्स को मुश्किल में डाल देने वाली मारिया को महिला होने के कारण वर्साव यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिल पाया. यह यूनिवर्सिटी केवल पुरुषों के लिए थी.
उन्हीं दिनों वर्साव में ही एक “फ्लोटिंग यूनिवर्सिटी” चलती थी. ये “फ्लोटिंग यूनिवर्सिटी” अंडरग्राउंड हो रही कुछ अनौपचारिक क्लासेज को कहा जाता था जो गुप्त रूप से आयोजित होती थी. मैरी ने अपनी पढाई को वहाँ जारी रखा और वहाँ से पेरिस चली गईं. वे वहाँ से अपनी छोटी बहन ब्रोन्या की पढाई के लिए कुछ पैसे भेजना चाहती थीं और उसकी स्कूली पढाई पूरी होने पर अपने पास बुला लेना चाहती थीं. पैसे की कमी से जूझ रही मैरी शाम को ट्यूशन पढ़ातीं और बाकी समय अपनी पढाई पर लगातीं. इतनी मेहनत के बावजूद भी वो ढंग का खाना खा पाने के लायक पैसे नहीं जुटा पातीं. वे अक्सर चाय और ब्रेड खाकर ही पढ़ाई करती रहीं. कई बार तो भूख से बेहाल होकर वे बेहोश भी हो जाती थीं.
1893 में फिजिक्स और एक साल बाद मैथ्स में मास्टर्स की अपनी डिग्री पूरी करने के बाद जब क्यूरी रिसर्च के लिए लैब की तलाश में थीं तो एक कलीग ने उन्हें पियर क्यूरी से मिलाया. सोर्बोन यूनिवर्सिटी के सबसे बेहतर दिमागों वाले ये दो वैज्ञानिक एक दूसरे से प्यार कर बैठे. उनका इश्क परवान चढ़ा और उन्होंने 26 जुलाई 1895 को शादी कर ली. सोर्बोन की उस लैब में इन दो प्यार करने वालों के एकसाथ होने की वजह से कुछ ऐसा घटा जिसने आने वाली दुनिया की किस्मत लिख डाली. 
तब के मशहूर वैज्ञानिक हेनरी बेक्कुएरल ने इस बात की खोज की थी की यूरेनियम से कुछ एक्स-रे जैसी किरणें निकलती हैं. मैरी को इस खोज ने बहुत प्रभावित किया और उन्होंने पियर से इसपर काम करने की इच्छा जाहिर की. इस खोज से उनके पति भी प्रभावित हुए और दोनों इन किरणों का पता लगाने में जुट गए. और तब रेडियोएक्टिविटी की खोज हुई. दोनों ने यह पता लगाया कि यूरेनियम से निकलने वाली यह किरणें सीधा एटम के न्यूक्लिअस से निकलती हैं. उस समय इस खोज ने एटम के अविभाज्य होने की मान्यता को जड़ से मिटा दिया. यही से यह साफ़ हो गया कि यूरेनियम का उपयोग करके न्यूक्लिअर हथियार विकसित किए जा सकते हैं. आज दुनिया न्यूक्लिअर हथियारों के जखीरे पर बैठी है. 

 यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेरिस की अपनी लैब में रिसर्च में मग्न मैडम क्यूरी    फोटो: AFP / Gettyimages


मैरी को नोबेल पुरस्कार मिलने का किस्सा भी रोचक है. अपने ऑफिस में बैठे पियर को एक दिन जब नोबेल पुरस्कार समिति की तरफ से पत्र आया तो उन्होंने यह कहते हुए नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया कि वे यह पुरस्कार अपनी पत्नी मैडम क्यूरी को मिले बिना नहीं स्वीकार करेंगे. नोबेल समिति ने मैरी को पुरस्कार के लिए इसलिए नहीं चुना था क्योंकि वे महिला थीं. नोबेल पुरस्कार समिति ने पियर की यह बात मान ली और हेनरी बेक्क़ुएरल, और क्यूरी दम्पति तीनों को भौतिकी का नोबेल दे दिया गया.

पियर और मैरी क्यूरी                          फोटो: Phys.org  

मैडम क्यूरी की मृत्यु बोन मैरो की एक बीमारी से हुई जिसके बारे में यह माना गया कि यह उनके ताउम्र रेडिएशन में काम करते रहने की वजह से हुई थी. 4 जुलाई 1934 को जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें लेड से बने किनारों वाले ताबूत में दफनाया गया ताकि मैडम क्यूरी का अस्तित्व कभी भी रेडिएशन से अलग न हो. मैडम क्यूरी अपनी लैब में यहाँ वहां घूमते हुए या किसी सम्मलेन में जाते समय भी हमेशा अपने कोट की जेब में रेडियम से भरी परखनलियाँ रखती थीं. रेडियम की खोज से उनकी आँखों में आई यह चमक रेडियम के कभी न ख़त्म न होने वाले रेडिएशन की तरह ही हमेशा बनी रही. जब वे मरीं तो भी उन्हें उनकी इस महान खोज से अलग नहीं किया गया. एकसाथ नोबेल पुरस्कार पाने वाले इस एकलौते दम्पति ने विज्ञान के सबसे ऊँचें शिखर पर अपनी प्रेम कहानी को स्थापित कर दिया. रेडियोएक्टिव पदार्थों की तरह यदि मैडम क्यूरी की भी हाफ-लाइफ कैलकुलेट की जाए तो उन्हें हमेशा के लिए अमर माना जाएगा.

Tuesday, 4 July 2017




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