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रात


फ़र्ज़ कीजिए कि आप गिर रहे हों एक अंतहीन खाई में
पर थम गया हो वक्त
क्या बता पाएंगे आप?
जब धीरे धीरे पिघलेगी आत्मा की आइसक्रीम
कौन संभालेगा बह चुके शहर की छत पर एक्स्ट्रा पानी
दिल धकेलता है जमा हुआ पानी
पर आंखों के किनारे तक नहीं पहुंच पाती एक बूंद भी
चाँद को ताकता राही भूलना चाहता है अपनी राह
यादें, सपने, सब हैं क़ैद करने की जंज़ीरें
आज़ादियों का पता नहीं है किसी को
जलती हैं शहर की बत्तियां रातभर
सड़कें भी तो नहीं रुकतीं
अगर आप जागेंगे रात को गुज़रते देखते हुए
रात आपको जला देना चाहेगी
और आप बुझ जाना चाहेंगे

Tuesday, 9 April 2019




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