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एक Unlearner की डायरी - 2

“Truth is Subjective.”

इतना कहकर वह हौले से मुस्कुराया. एक क्षण को सन्नाटा छा गया.

Wednesday, 30 November 2016



आवाजें..


वे किस्से सुनाती हैं
अंधेरों के बिखरने की
रौशनी के रेशे उधेड़ कर देखती हैं
अनगिनत बंद दरवाज़े
पागलों सी आवाजें

कौन आवाजें?
आवाजें..

Wednesday, 21 September 2016



एक Unlearner की डायरी

"आँखें खोलो!" 

वह अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया. सब डर गए. कोई नहीं सो रहा था पर वह बता रहा था कि तुम सब आँखें बंद किये सो रहे हो. कुछ लोगों को छोड़कर पूरी दुनिया सो रही है. और इसीलिए वह चिल्ला रहा है, शोर मचा रहा है. उसे नहीं पता कि दुनिया किसी दिन जागेगी भी या नहीं पर इस क्लासरूम की दीवारों के भीतर जो कहानियाँ आकार ले रही हैं वह उनके भीतर किसी अँधेरे कमरे में बंद रौशनी को आज़ाद करना चाहता है. हाँ, वह खुद परेशान है और इन चैन से सोए लोगों की नींद तोड़ कर उन्हें भी परेशान करना चाहता है.

Saturday, 30 July 2016



मैं खुद को तोड़ता मरोड़ता फिर से बनाता हूँ..

बचपन से जो कुछ भी सीखा है
और दुनिया ने सिखाया है 
उस ज्ञान को भुलाना चाहता हूँ 
और इसी चाहत में 
मैं खुद से रोज़ इक जंग लड़कर 
हार जाता हूँ,
मैं खुद को तोड़ता मरोड़ता फिर से बनाता हूँ ..

Sunday, 17 April 2016



एक बेतुकी सी प्रेम कहानी

प्रेम कहानी और वह भी बेतुकी सी. 
ज़िन्दगी अक्सर बेतुकी बातों में ही अपने छंद संजो जाती है, जिन्हें पाने के लिए हम कितने ही प्रयत्न करते रहते हैं.
कहानी शुरू होती है. एक सत्रह बरस का लड़का और चौदह बरस की लड़की.

Sunday, 10 April 2016