"आँखें खोलो!"
वह अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया. सब डर गए. कोई नहीं सो रहा था पर वह बता रहा था कि तुम सब आँखें बंद किये सो रहे हो. कुछ लोगों को छोड़कर पूरी दुनिया सो रही है. और इसीलिए वह चिल्ला रहा है, शोर मचा रहा है. उसे नहीं पता कि दुनिया किसी दिन जागेगी भी या नहीं पर इस क्लासरूम की दीवारों के भीतर जो कहानियाँ आकार ले रही हैं वह उनके भीतर किसी अँधेरे कमरे में बंद रौशनी को आज़ाद करना चाहता है. हाँ, वह खुद परेशान है और इन चैन से सोए लोगों की नींद तोड़ कर उन्हें भी परेशान करना चाहता है.
वह अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया. सब डर गए. कोई नहीं सो रहा था पर वह बता रहा था कि तुम सब आँखें बंद किये सो रहे हो. कुछ लोगों को छोड़कर पूरी दुनिया सो रही है. और इसीलिए वह चिल्ला रहा है, शोर मचा रहा है. उसे नहीं पता कि दुनिया किसी दिन जागेगी भी या नहीं पर इस क्लासरूम की दीवारों के भीतर जो कहानियाँ आकार ले रही हैं वह उनके भीतर किसी अँधेरे कमरे में बंद रौशनी को आज़ाद करना चाहता है. हाँ, वह खुद परेशान है और इन चैन से सोए लोगों की नींद तोड़ कर उन्हें भी परेशान करना चाहता है.
"तुम्हें जो कहना है, कहो और जाओ पर उम्मीद मत करो कि कोई सुनेगा. हर तरफ उजाला फैला है और तुम्हें सिर्फ अँधेरा दिखाई दे रहा है. अँधेरा जो निराशा पैदा करता है और निराशा नींद छीन लेती है. तुम हमें चैन से सोने दो."
"पर कम से कम तुम्हें तो जागना चाहिए. तुम सोने के लिए नहीं बने हो और अगर तुम मेरी क्लास में आओगे तो मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा."
सबने अपना अपना फैसला कर लिया. धीरे धीरे प्रतिरोध कम होने लगा और और आँखों की गिनती उँगलियों पर हो जाने तक कम हो गई.
"मुझे तुम पर भरोसा है. तुम बोलो मैं सुनूंगा."
किसी ने कहा.
और फिर बहुत दिनों तक उसकी आवाज़ उस क्लासरूम की दीवारों से टकराकर उन उनींदी कहानियों पर चोट करती रही. कुछ नींदें कमज़ोर पड़ने लगी थीं.
"पता नहीं क्यों पर आजकल मैं बहुत परेशान रहने लगा हूँ. सबकुछ मिथ्या लगने लगा है. बचपन से जो सपनों का पहाड़ खड़ा किया था सब भरभराकर गिरने लगा है"
"तुम्हारे ऊपर चढ़ा नींद का खोल टूट रहा है."
"पर कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ."
"अभी कुछ मत करो. अभी जगे नहीं हो."
"पर मैं बहुत कष्ट में हूँ."
"क्या चाहते हो?"
"मन करता है सबकुछ छोड़ कर कहीं चला जाऊं."
"क्यों?"
"शायद बुद्ध हो जाऊं!"
"बुद्ध कौन है?"
"पता नहीं. पर मैं कौन हूँ? "
"मुझे क्या पता? खुद से पूछो."
"मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ."
"तुम अकेले ही अकेले नहीं हो. मैं भी अकेला हूँ. हम दोनों साथ मिलकर अकेले हैं."
"क्या करूँ?"
"पढो, सबकुछ पढ़ो. पर कहीं भी उलझो मत. विचारधाराओं में तो बिलकुल नहीं."
"तुम कहाँ जा रहे हो?"
"वहाँ, जहां कोई सुन सके."
"मैं सुन तो रहा हूँ तुम्हें."
"पूरी दुनिया सो रही है. इतना वक़्त नहीं है मेरे पास."
"मैं अकेला हो जाऊंगा."
"तुम अकेले थे, अकेले रहोगे. मैं अकेला हूँ, अकेला रहूँगा."
"अच्छा नहीं लग रहा."
"नहीं लगेगा. अपने दर्द को संजोओ, खुद को संभालो और जीना सीख लो."
"..."
"..."
"पर कम से कम तुम्हें तो जागना चाहिए. तुम सोने के लिए नहीं बने हो और अगर तुम मेरी क्लास में आओगे तो मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा."
सबने अपना अपना फैसला कर लिया. धीरे धीरे प्रतिरोध कम होने लगा और और आँखों की गिनती उँगलियों पर हो जाने तक कम हो गई.
"मुझे तुम पर भरोसा है. तुम बोलो मैं सुनूंगा."
किसी ने कहा.
और फिर बहुत दिनों तक उसकी आवाज़ उस क्लासरूम की दीवारों से टकराकर उन उनींदी कहानियों पर चोट करती रही. कुछ नींदें कमज़ोर पड़ने लगी थीं.
"पता नहीं क्यों पर आजकल मैं बहुत परेशान रहने लगा हूँ. सबकुछ मिथ्या लगने लगा है. बचपन से जो सपनों का पहाड़ खड़ा किया था सब भरभराकर गिरने लगा है"
"तुम्हारे ऊपर चढ़ा नींद का खोल टूट रहा है."
"पर कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ."
"अभी कुछ मत करो. अभी जगे नहीं हो."
"पर मैं बहुत कष्ट में हूँ."
"क्या चाहते हो?"
"मन करता है सबकुछ छोड़ कर कहीं चला जाऊं."
"क्यों?"
"शायद बुद्ध हो जाऊं!"
"बुद्ध कौन है?"
"पता नहीं. पर मैं कौन हूँ? "
"मुझे क्या पता? खुद से पूछो."
"मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ."
"तुम अकेले ही अकेले नहीं हो. मैं भी अकेला हूँ. हम दोनों साथ मिलकर अकेले हैं."
"क्या करूँ?"
"पढो, सबकुछ पढ़ो. पर कहीं भी उलझो मत. विचारधाराओं में तो बिलकुल नहीं."
"तुम कहाँ जा रहे हो?"
"वहाँ, जहां कोई सुन सके."
"मैं सुन तो रहा हूँ तुम्हें."
"पूरी दुनिया सो रही है. इतना वक़्त नहीं है मेरे पास."
"मैं अकेला हो जाऊंगा."
"तुम अकेले थे, अकेले रहोगे. मैं अकेला हूँ, अकेला रहूँगा."
"अच्छा नहीं लग रहा."
"नहीं लगेगा. अपने दर्द को संजोओ, खुद को संभालो और जीना सीख लो."
"..."
"..."
Post a Comment