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वही पुरानी धुन


दिल के बंद दरवाज़े पर
है ये किसका जोरदिल का पंछी फँस गया
क्या जाने किस ओर

हौले हौले दबे पाँव
किसकी है ये आहट
जैसे जवां हो रही
नई नवेली चाहत

संवेदनाओं के पन्नों  पर
छाई नई उमंग
नभ से ऊँची उड़ रही
मेरे सपनों की पतंग

मौसम ने अचानक क्यों
ऐसी ली अंगड़ाई
सारी बातें भूल कर
बह चली पुरवाई

दिन के पत्ते झर गए
हुई सुहानी शाम
मानो कि बढ़ गए हों
रौशनी के ज्यों दाम

लो चंदा भी आ गया
मेरे तराने सुन
दिल ने फिर से छेड़ दी
वही पुरानी धुन

कितनी प्यारी लंबी बातें
कैसे वो अहसास
कबसे अकेला बैठा हूँ
तेरी यादों के पास

ना तो मै यूँ रूसवा हूँ
ना ही है तनहाई
मेरे दिल के हर कोने में
बस तेरी परछाई

मेरी आँखों में खुशियों के
छलके ज्यों दो जाम
अँधेरे की चादर में
मै और तुम्हारा नाम

यादों के आकाश में
उड़ूं मैं पंख पसार
इतनी सी है दुनिया मेरी
बस इतना संसार।

Monday, 28 April 2014




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